उमंग से आए 2020 ने जब दस्तक दी…..
तब नवीन जीवन, नई उमंगों, नई उम्मीदों का सवेरा दिखा।
जनवरी से फरवरी तक सरकते-सरकते, एक नया सा जीव दिखाई पड़ा….
यह कैसा जीव था, जिसकी ना राह पता….ना मंज़िल।
जनजीवन कर दिया ठप, उगी यह कैसी किरण….
इंसानियत तो पहले से ही, बंद थी…..इंसान भी अब हुआ बंद।
मार्च-अप्रैल आते-आते घर बने पिंजरे….
और घुट रहे, पक्षी हुए आज़ाद।
घूमना-फिरना छोड़कर, खेल-खेल में सीखे कई नए अंदाज़….
ज़िंदगी की चुलबुलाहट को, करीब से समझा सब ने आज।
कई घरों में उजाला, तो कई घरों में अंधेरा दिखा….
कहीं दूर हुए दिल…करीब हुए, तो कहीं करीबी दिल…दूर हुए।
कई चेहरों पर मुस्कुराहट दिखी, तो कई चेहरों पर आंसू…..
कई घरों से किलकारियां सुनाई पड़ी, तो कई घरों से दहाड़े।
मई-जून की इस रफ्तार को, पकड़ा जुलाई-अगस्त ने……
त्योहारों की गूंज ने महकाए, कितने रास्ते।
ना चाहते हुए भी सजे बाज़ार, उमड़ी भीड़ भी….
पर ना थी अब वो रौनक, और ना था अब वो प्यार।
मास्क लगाए उमड़ा था, जनसैलाब….
खौफ को गले लगाएं, पटरी पर सरक रहा था जीवन।
अब ना सावन के झूले थे, ना राखी की वो मिठास….
‘गणपति बप्पा मोरिया’ रह गया, बस बनकर घर की बात।
गरबे की वो धूम, दुर्गा का शक्तिमान स्वरूप…..
पंडालों की जगमगाहट से पहुंचा, virtual platform पर खूब।
डर को समेटे हुए, खुशियों को बिखेरते हुए….
बढ़ रहा था सितंबर-अक्टूबर।
दीयों की रोशनी लिए खड़ा था, दिवाली का त्यौहार…
शहनाइयों की गूंज लिए, सज रहा था नवंबर।
दिसंबर के आते ही, मन में खुशी की लहर फिर से दौड़ी….
लगने लगा, बस यही था 2020 का सिलसिला और कड़ी।
पीछे मुड़कर देखा, तो पता चला….
कितने अस्तित्व इस साल दफ़न हुए और कितने जले।
इस साल ना शादियों की धूम रही, ना रही बैंड बाजे की आवाज़….
ना जन्म का स्वागत हुआ, ना मरण का शोक।
होड़ थी, बस खुद को बचाने की…
और इसी दौड़ में मिल गया समय खूब, खुद को समझने का।
निराशा से भरे इस साल ने दिखाए, जीने के अनेक नए रास्ते….
‘संतोष’ ही है असली वैभव, अच्छे जीवन के वास्ते।
दबे पांव आए, अनेक रूपों में अवतरित होते हुए 2020 ने…..
कई मायनों में अपने-पराए का भेद समझाया।
पटरी से उतर रहे जीवन को…..
फिर से पटरी पर ठहराया।
जो तो यह समझ पाए, उन्होंने खुशी से 2020 को अपनाया….
जो ना समझ पाए, उन्होंने गम से 2020 को गवाया।
कई संवेदनाओं को लिए, कई हौसलों को दिये जा रहा है 2020…..
समय की चौखट पर, दस्तक देने जा रहा है 2021
2020 की सीख को लिए निरंतर बढ़ रहे हैं हम….
गति जीवन की सदा निर्बाधित रहे, प्रार्थना करते हैं हम।
Dr. Aparna (Dhir) Khandelwal, Assistant Professor, School of Indic Studies, INADS, Dartmouth