पुरुष का एक बुद्ध बनना,
ऐसा अंतरयुद्ध क्यों?
नारी की मातृत्व शक्ति,
बुद्ध पे भी भारी क्यों?
स्त्री का बुद्ध होना,
क्यूँ सरल है…?
नारी से एक नर बनाना,
ज्यूँ सरल है…।
रात के सन्नाटे में,
गौतम चला,
कितनी पीड़ा ग्रसित,
वो होगा भला!
छोड़कर वो राज वैभव,
अगम राह पे चल पड़ा।
सुख के साधन त्याग कर,
पग मार्ग तप निश्छल धरा।
नारी का स्व विकट पथ,
स्वतः दिखता क्यूँ नहीं?
नर की भी मार्मिक व्यथा,
प्रायः दिखती क्यूँ नहीं?
पुरुष को पुरुषार्थ का,
पुण्य मिलता कर्म से।
नारी के पुरुषार्थ का,
आधार ही है जन्म से।
नारी का तो जन्म ही,
बस देवी का संयोग है।
दायनी संसार की,
एक माँ उसी का योग है।
माँ का जीवन ही,
तपस्या स्रोत है।
उसके बलिदानों से,
जगोत प्रोत है।
इस तपस्या त्याग का,
जो त्याग कर।
नारी सन्नाटे में,
घर से भागकर।
निकले जब नारी,
कहीं चुपके से वो।
लगता स्वाभाविक,
हैं पग भटके से वो।
रात सन्नाटे में घर,
शान्ति से बैठी रहे।
घर में उसके पुरुष बच्चे,
सभी ही सनमुख रहें।
उनकी शिक्षा दीक्षा,
उसका सत्य है।
क्यों?
माँ का माँ होना,
सनातन सत्य है।
क्या
माँ को केवल माँ,
बने रहना सरल है ?
नारी के नारीत्व में,
क्या माँ गरल है?
नारी की तप यात्रा,
होती है माँ के द्वार तक।
जिसको ये भाए नहीं,
ना पहुँचे सत्य के द्वार तक।
क्योंकि,
सत्य ने कभी सत्य की,
क्या खोज की?
सत्य पे लांछन कहीं,
चिपके कभी?
शब्द का लांछन,
अगर नारी पे है।
कर्म के कंचन की,
माँधिकारी भी है।
शब्द तो बस शब्द हैं,
माँ बैखरी के त्रोण में।
हर किसी भी बाण का,
उत्तर हैं उसके कोश में।
इसलिए,
क्या कभी सोचा?
कि स्त्री को,
बुद्ध सा बनना ही क्यों?
घर में बैठे डंका जिसका,
सत्य का बजता है यों।
पिता पर संदेह भी,
पर माँ पे शक होता नहीं।
वो धरा सी धैर्यशीला,
कोई शक होता नहीं।
क्या है वो स्त्रीत्व?
स्त्री जो परिभाषित करे।
त्रिगुण का सामंजस्य,
जिसमें स्वतः नैसर्गिक बहे।
स्त्री ही सत्व, रज, तम,
है खिलाती गोद में।
उस का बस कुछ अंश ही,
बुद्ध पाता बोध में।
फिर से पूछें,
स्त्री को बुद्ध बनना,
क्यूँ सरल है?
फिर से सोचें, स्त्री को?
स्त्री को बुद्ध बनना,
यूँ सरल है।
– Prof. Bal Ram Singh, Director, Institute of Advanced Sciences, Dartmouth, MA, USA
कविता भावों ,विचारों और प्रश्नों
से भरी हुई है। शैली प्रतीकात्मक है । शब्दावली भावानुकूल कभी सरल, कभी गूढ़ है। कुछ शब्दों की जल्दी की गई पुनरावृत्ति रस की बाधक है। यह जरूर है कि भावों की धारा उस बाधा को पार करती हुई आगे बढ़ती जाती है। बधाई।
शशि तिवारी, दिल्ली
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माँ के ममत्व को पारिभाषित करती कविता।
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भावों की सरिता सी
माँ पर लिखी यह कविता
अद्भुत मंत्रमुग्ध सी करती है
जो इसमें गोता लगाए
गंगा माँ से पुण्य पाए।
हे कविश्रेष्ठ!इस रचना पर
तुम्हे लख लख बधाई
स्वीकार करो स्वीकार करो
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माँ ! तम्हें नमन है
—–————–
भेदभावना जिसके सम्मुख कभी नहीं टिक पाती।
करुणा जिसके जीवन की है एक मात्र बस थाती।
सद्गुण को लखने में रमता हर पल जिसका मन है।
ऐसी विमल माँ को मेरा बारम्बार नमन है।।1।।
जैसा अंदर वैसा बाहर मिलता ना नर जग में।
साधु वेश में सन्तति हित भरा हुआ रग रग में।
अन्दर भीतर एक तुम्हारा शुभ रूप शुभ मन है।
पीयूष स्रोत सी बहने वाली जननी तुम्हें नमन है।।2।।
लोक शिखर के ऊपर चढ़ तुम विनय सदन की वासी।
मान तुम्हे कुछ ना छू पाता सन्तति हित की दासी।
सर्पों से आहत हो फिर भी तव जीवन चन्दन है।
चन्दनमय जीवन की सर्जक माँ! तुम्हें नमन है ।।3।।
सूरज तो बस दिन दिन में ही तमो-राशि हर पाता।
चन्दा निशा काल में केवल उजियाला फैलाता।
किन्तु तुम्हारा जीवन प्रसूते!हर पल देता ज्ञान किरण है।
ज्ञान किरण की प्रेरक माते! बारम्बार नमन है।।4।।
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I like your service to your mother!!
The article and photos are really touching! Thank you.
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स्त्री यदि बुद्ध बन जायगी
सृष्टि अपने मे ही सिमट जायगी। बहुत सुंदर, एक विचार प्रधान कविता।
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Over whelmed by the emotional touch in the poem.
मां की ममता की अमूल्य झलक।
Thank so much for sharing👏😊
by – Brig. (Dr.) JS Rajpurohit
अतिसुंदर भावांजलि……आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं…..साभार!
by – Dr. Vimla Vyas
अद्भुत अभिव्यक्ति, सर।
by – Dr. Sarita Sharma
👌👌बहुत खूब।
by – Dr. Vandana
उत्कृष्ट 👌👍
by – Mr. Binod Kumar Singh
बहुत अच्छी कविता है।
by – Mr. Aseem
Ati Sundar , Happy Mother’s day !
by – Mr. Fateh Bahadur Singh
बेहतरीन – लाजवाब – बेमिसाल !!
by – Mr. Abhishek Singh
Excellent!
by – Mr. Pradeep Sengar
Very nice.
I like this very much.
by – Dr. Raj Kumar
बुद्ध का बुद्धत्व, रामायण सीता की पीर..
तुलसी के मानस की चौपाई, गंगा की हो स्वच्छ नीर…
सारा आकाश सारी प्रकृति, सबकुछ उसी का भाव है…
जीवन, दर्शन, कथा, महात्म्य, उसी के गर्भ का आविर्भाव है…
स्त्री का मातृत्व रूप सामंजस्य और समाहित भावों की अंतिम परिणति है….
by – Mr. Alok Dwivedi
बहुत सुंदर!
by – Arun Chaudhary
सुन्दर अभिव्यक्ति।
by – Dr. Radhey Shyam Singh, Kamla Nehru Institute of Sciences and Social Sciences
बहुत सुन्दर संवेदना, जो शब्दों में रची गई है।
by – Dr. Sunita Singh, Ambedkar University, Delhi
अत्यंत सुन्दर रचना है, आप इतने अच्छे कवि है यह पता नहीं था ।
by – श्रीमती पतुल कुमारी, भूतपूर्व लोकसभा सदस्य, बिहार
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जब शब्दार्थ स्वयं संकेत मात्र देकर छिप जाता है, तो कविता गूढ और रहस्यमयी बन जाती है।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ऐसी राहस्यवादी शैली की कविता लिखा करते थे।
कविता मेरी दृष्टि से अत्यंत सफल है|
सुंदर भाववाही कविता के लिए साधुवाद ।
by – Madhusudan H Jhaveri
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Such a good post
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Thank you so much.
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मर्मस्पर्शी कविता, मां के लिए। जगोत से क्या आशय है, आचार्य।
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जगोत = जग+ ओत; पूरा भावार्थ आता है – जग ओत प्रोत से 🙏
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