– प्रोफेसर बलराम सिंह, सदस्य, बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर, वेव्स
Bal Ram Singh, Ph.D., Professor and President of the Institute of Advanced Sciences, has been Professor (1990-2014) of Chemistry and Biochemistry, and Biology, and the Founding Director (2000-2014) of Center for Indic Studies at UMass Dartmouth. At the Institute, he is also the Executive Mentor of the School of Indic Studies where his research includes Ayurvedic science and technology, Yoga and Consciousness, Vedic education pedagogy, and Vedic social and political traditions.
जहाँ पर भाषा किसी समाज की सभ्यता एवं संस्कृति की धरोहर तथा संयोजक होती है वहीं पर इसमे विविधता की क्षमता देश और काल की अनुकूलता को सम्बल देती है। भाषा की विविधता जिस तरह से भारत में दृष्टिगोचर होती है ऐसा किसी और देश में नही है। ऐसी अवस्था में संपर्क भाषा की नितांत आवश्यकता है। भारत के आज की राजनीतिक एवं सामाजिक सन्दर्भ में किसी एक भारतीय भाषा का संपर्क भाषा के रूप में उभरना सरल नही है। हिन्दी, ही इस प्रयोजन के लिए उपयुक्त है जो कि एक राष्ट्रीय एवं कार्यकारणी भाषा के रूप में संवैधानिक तौर पर प्रतिष्ठित है।
परन्तु इसे सर्वमान्य बनाने के लिए सरकार तथा समाज को कई गंभीर कदम उठाने होंगे। सर्वप्रथम इस विषय पर सार्वजानिक रूप से बौद्धिक चर्चाएं होनी चाहिऐ जिसमें हर वर्ग के लोगों को सम्मिलित करना होगा। चूँकि हिन्दी भाषा का विकास पहले से संघर्षमय परिस्थितियों में हुआ है, इसलिए इसमें परिस्थितियों के अनुकूलन की क्षमता अन्तर्निहित है। इस तरह हिन्दी में हिदुस्तानी भाषाओं से सम्बंधित भाषाओं के शब्दों एवं विचारों को समाहित करने की व्यवस्था पहले से ही विकसित है। दूसरी बात जोकि ज्यादा जोर देने की है, वह यह कि हिन्दी भाषा को ज्ञान, विज्ञान, तथा व्यवसाय की औपचारिक भाषा बनाना होगा। यह क्षमता भी हिन्दी में इसके संस्कृत निष्ठ होने के कारण निहित है, परन्तु शासकीय, सामाजिक एवं प्रज्ञात्मक बल की आवश्यकता है। अंततः हिन्दी को संपर्क भाषा बनाने के लिए इसका वैष्वीकरण करना होगा जिससे यह प्रतिस्पर्धात्मक चरण से उठकर सार्वभौमिक रूप में स्वीकारणीय हो सके। इसके लिए भारतीय परम्परागत जीवन के सारभूतों को विश्व के समक्ष हिन्दी के माध्यम से रखना होगा।
इस कार्य की सम्पन्नता के लिए एक विस्तृत रणनीति की आवश्यकता है। इसमे सर्वप्रथम है कि हिन्दी को केवल एक संपर्क भाषा के रूप मे ही देखा जाय, एक सांस्कृतिक भाषा के रूप मे नहीं।सांस्कृतिक उदगार के लिये भारत की क्षेत्रीय भाषाएँ पर्याप्त हैं। इस प्रक्रिया को अविलम्ब संबल हेतु यह आवश्यक है कि भारत की अन्य कई सांस्कृतिक भाषाओँ को हिंदी भाषा मे जोड़ने की प्रक्रिया तुरंत स्थगित कर दी जाय। इनमे मगधी, मैथिली, भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा, बुन्देलखण्डी, हरियाणवी, इत्यादि भाषाएँ सम्मलित हैं, जिनका गौरव पूर्ण इतिहास, साहित्य, एवं सामाजिक उपयोगिता सदियों से चली आ रही है। जब से इन भाषाओ को हिन्दी में सम्मिलित कर लिया गया है, न केवल इन भाषाओं का विकास रुक गया है वल्कि उसके साथ ही इन भाषाओं मे सन्निहित संस्कृति भी दुबक कर रह गई है। हिन्दी सम्बंधित क्षेत्रीय भाषाओँ को अलग सम्मानित करने से अन्य क्षेत्रीय भाषीय लोगो का हिन्दी के प्रति विरोध भी कम हो जायेगा क्योकि ऐसी स्थिति में किसी एक क्षेत्र को भाषाई लाभ का तर्क प्रभावहीन साबित होगा।
हिन्दी को संपर्क भाषा बनाने की आवश्यकता के सभी बिन्दुओं पर प्रकाश डालने वाला यह लघु लेख सर्वथा सराहनीय है .
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सीमित शब्दावली में इतना प्रेरक लेख नितांत सराहनीय है। हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
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बहुत अच्छा लेख है यह।
धन्यवाद इस सूचना हेतु और मैं भी प्रेरित होकर कुछ पढ़ने लगा।
आज मैं पढ़ रहा हूँ कि देशज और विदेशज शब्द कौन कौन से हैं, जिनका हम सामान्य वार्तालाप में उपयोग करते हैं।
तो मैंने पाया कि जब बच्चा कक्षा एक मे जाता है, तभी से उसे भारतीय अथवा यों कहें तो हिन्दी के शब्दों के स्थान पर अरबी फारसी के शब्द पढ़ाये और याद कराए जाते हैं, तो वह कैसे पूर्ण रूप से भारतीयता को आत्मसात करेगा।🤔
कृपया भारतीय शिक्षा के संबंध में भी भारत सरकार के साथ वैचारिक मंथन कीजिए🙏
*विदेशी शब्द-* *जिनका हम भारतीय शिक्षा में उपयोग करते हैं-*
कबूतर(फारसी)
खरगोश(फारसी)
गमला(पुर्तगाली)
औरत(फारसी)
गुलाब(फारसी)
चश्मा(फारसी)
आवाज(फारसी)
चाय(चीनी)
लीची(चीनी)
जोश (फारसी)
आराम (फारसी)
उम्र (अरबी)
असर (अरबी)
तारीख(अरबी)-
खबर (अरबी)- आज की ताजा खबर जैसा प्रयोग
किशमिश (फारसी)
रंग (फारसी)
सरकार (फारसी)
गिरफ्तार(फारसी)
नाव (फारसी)
मुर्गा (फारसी)
अचार (पश्तो)
पटाखा (पश्तो)
चाकू (तुर्की)
चम्मच (तुर्की)
कमरा (पुर्तगाली)
अलमारी (पुर्तगाली)
चाबी (पुर्तगाली)(आज कोई कुंजी बोल दे, तो अन्य जन हंसने लगते हैं)
रिक्शा (जापानी)
कैंची(तुर्की)
गरीब (अरबी) हिंदी में निर्धन होता है।
दुनिया (अरबी) संसार/जगत(हिंदी)
बाकी भी बहुत शब्द हैं, विशेष रूप से अंग्रेजी के शब्द।
मुझे पता है कि संभव है कि हम इन सभी शब्दों के स्थान पर हिंदी के सभी शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। लेकिन ऐसा संभव है कि यथासंभव हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करें।
और यदि यह भी संभव न हो पाए, तो जो हिंदी के शब्दों का उपयोग कर रहा है, उसे देखकर उसका उपहास न बनाएं। क्योंकि इससे वह हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है।
आज आवश्यकता है तो बच्चों को प्राथमिक शिक्षा में ” क से कबूतर, ख से खरगोश, ग से गमला, “को बाहर निकालने की।
इसकी जगह भारतीय भाषाओं के शब्दों (विशेष रूप से संस्कृत, हिंदी, द्रविड़ या अन्य भारतीय भाषाओं ) का उपयोग करना चाहिए।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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प्रासंगिक आलेख।सरकारों को अनुकूल अवसर देना चाहिए बाकी कार्य तो भाषा अपने प्रवाह से करती है।हिन्दी का सबसे ज्यादा बंटाधार तो राजभाषा आयोग की बनाई शब्दावली ने किया।
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हिन्दी भाषा समरसता की
यह प्रेम बढ़ाती जाती है..
सौंदर्य सुपथ जीवन भर का..
नव मार्ग दिखाती जाती है..
पीते जन सौभाग्य समझते,
सब कलुष द्वेष की यह हाला..
अविराम लक्ष्य संधान किये,
मनहर मतवाली मधुशाला.. . (Alok)
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एकदम नवीन और अनूठा प्रस्ताव है।यह स्वीकार्य भी होगा यदि सत्ता ने इच्छा शक्ति जताया।सम्पर्क भाषा ही वह रास्ता है जो हिन्दी को राष्ट्र भाषा की मंजिल तक ले जाएगा।सीधे राष्ट्र भाषा का प्रस्ताव तो भड़काऊ एजेडा बन चुका है।
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