माता की अवधारणा

मदर्स डे पर विशेषविमर्श

-डॉ. शशि तिवारी

 

यह संसार भगवान् की अद्भुत रचना है। भगवान् के इस सृजन का हम सब प्राणी उपभोग करते हैं। रचयिता होने से ही ईश्वर को ‘माता’ कहते हैं – त्वमेव माता च पिता त्वमेव । माना गया है कि हम सब ईश्वर के अंश हैं। तो जो गुण ईश्वर में हैं वे प्राणियों में भी हो सकते हैं या कि प्राकृतिक रूप से होने चाहिए। मातृत्व एक ऐसा ही गुण है। केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी किसी न किसी प्रकार के सर्जन और निर्मिति की कला में निपुण देखे जाते हैं। हर किसी में रचनाधर्मिता होती है- कभी कम कभी अधिक। तभी देवी की स्तुति में कहा गया है –

            “या देवी सर्वभूतेषु मातॄरूपेण संस्थिता। 

            नम: तस्यै नम: तस्यै नम: तस्यै नमो नम:॥”

वेद में माता-पिता के युग्म को ‘मातरा’ या ‘मातरौ’ कहते हैं यानी माता और पिता दोनों माता ही हैं। इसी तरह द्यावापृथ्वी का नाम ‘मातरा’ है; पृथ्वी हमारी माता है और आकाश पिता। सांसारिक माता और पिता के जोडे के लिए ‘पितरौ’ या ‘पितरा’ शब्द भी प्रयोग में आए हैं; यानी दोनों ही पिता हैं। यह ठीक वैसे ही है जैसे पति-पत्नी के युग्म को ‘दम्पती’ कहते हैं। भारतीय मनीषा ने शब्दों में ही जीवन-मूल्यों को सूत्र में मणियों कि भांति पिरोया हुआ है। तात्पर्य है कि महत्व की दृष्टि से माता और पिता लगभग समान ही हैं। इसीलिए कहते हैं – ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव’। परंतु जब बात जनन की होती है तो जनि, जनी, जनयित्री आदि नामों से मां को जाना जाता है क्योंकि वह उत्पन्न करने वाली है। केवल उत्पन्न ही नहीं उसके बाद जो लालन-पालन की आवश्यकता है वह भी वही करती है। एतदर्थ उसमें स्नेह और ममता की आवश्यकता है और इसके वाचक अंबा, अम्बि, अम्बी आदि शब्द मां के लिए वेद में प्राप्त होते हैं। इन सब नामों से माता जननी, स्नेहमयी, पूजनी्य़ा, आत्मीया बतायी गयी है। उत्पन्न करने वाली का साक्षात् स्वरूप ‘माता’ पद में दिखाई दे्ता है, इसलिए उसे इस सम्मान से विभूषित किया गया है कि वह जननी है और ईश्वर के समकक्ष है।

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सतत् स्मरणीय है कि साक्षात् माताएं हमारी सम्माननीय हैं; क्योंकि ‘मातृत्व’ मानवीय गुणों में सर्वोपरि है। रचना करना तथा पालन करना – प्रत्येक मनुष्य का धर्म कर्म होना चाहिए, तभी सामजिक संतुलन बना रह सकता है। जब हम मातृ-दिवस मनाये तो ये याद रखें कि यह अपने दायित्वों को वहन करने की शिक्षा देने वाला दिन है। यह रचनाधर्मिता का दिन है या फिर रचनाधर्मिता के अभिनंदन का दिन!

– डॉ. शशि तिवारी,अध्यक्ष, वेव्सभारत 

4 thoughts on “माता की अवधारणा

  1. वर्तमान समय मे शास्त्रीय संदर्भ के साथ मां और मातृत्व का सुंदर प्रसंग वेदविदुषी आचार्या शशि तिवारी मैडम के द्वारा उपस्थापित किया गया। मा पराम्बा उनको दीर्घायु रखें।

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  2. That also explains the oft repeated question, ‘why at all God made this immensely large and infinite cosmic world’ becoz srajan/creation (of some thing good) is His Dharma,duty, nature or obligation. He simply doesn’t create for fun. His creation is all for purpose…jaiagarwal

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  3. आदरणीया तिवारी मैम ने बहुत ही सुंदर तरीके से वेदों के आधार पर माँ का चित्रण किया है।जो कि कम शब्दों में बहुत कुछ माँ की विशेषताओं को उजागर कर रहा है।यदि पृथ्वी से इसकी तुलना करें तो माँ का स्थान उच्च मिलेगा।इसीलिए वेद व्यास ने लिखा है-माता गुरुतरा भूमे

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