ब्रिगेडियर (डा.) जीवन राजपुरोहित
देश की सेहत ज़रा नासाज़ है।
कोरोना का कहर असर दिखा रहा है,
अर्थव्यवस्था को डरा रहा है,
उद्योग की गर्दन दबा रहा है,
जनमानस को डरा रहा है।
इस साल गणतंत्र दिवस ख़ास था,
तैयारी पूरी थी, पर आने वाले नहीं थे,
आगंतुक बहुत थे, पर पाबंदी भी थी।
कोरोना की धाक इतनी कि,
बोरिस जॉनसन भी आने से मुकर गए।
दिल्ली रानी की तरह सजाई गई थी,
सुंदरता चरमोत्कर्ष पर थी,
सुरक्षा का घेरा भी कवच मंडल की तरह था,
और दिलों की गरमी पूरे देश में छाई थी।
उधर साज़िश की तैयारी में,
कौन थे वो किसानों के भेष में,
बिल संशोधन के नाम पर, ना जाने क्या चाह रहे थे,
किसानों के विकास के नाम पर, लोकतंत्र को डरा रहे थे।
सत्ताधारी थे या विरोधी, आवाज़ें उनकी बुलंद थीं,
कुछ समझ नहीं आ रहा था कि,
दिन गणतंत्र दिवस था, या तांडव हैवानियत का।
किसानों का यह हाल, जो पिछले 70 साल में बदल नहीं पाया,
अब उन्हें यह एक बिल अखरने लगा,
संशोधन मंजूर नहीं, पूरे बिल को ही निरस्त करना चाह रहे थे।
किसानों के हाथों उन्हीं की, किस्मत को गर्दिश में झोंके जा रहे थे।
मान लिया, आपको बिल पर ऐतराज़ है,
कुछ विषयों पर आप नाराज़ हैं।
राजनीति झलक रही, आपकी बातों और व्यवहार से,
फिर भी लोकतंत्र के नाते, आपसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।
सोचा था…
सामाजिक सोच झलकेगी,
भारतीयता, विश्वास और विकास में लक्षित होगी।
पर यह क्या?
गणतंत्र दिवस पर ही तिरंगे को बदरंग कर दिया,
देश और संविधान को अपमानित कर दिया।
विश्वास दिलाया था कि रैली शांतिपूर्ण होगी,
सभी मिलकर ट्रैक्टर रैली से अपना विरोध प्रकट करेंगे।
शांति दूत बन, किसानों का भला करेंगे,
राजनीति से हट, देशप्रेम से विकास करेंगे।
पर…
आपने तो विश्वासघात कर दिया,
देश में हिंसा फैला, सभी को हतप्रभ कर दिया।
किसानों के नाम पर, विकास और किसानी छोड़,
देश को देश -विरोधी गतिविधियों से ही तोल दिया।
लगता है आप किसान नहीं, किसानों के भेष में हैवान हो,
किसानों के नाम पर राजनीति कवचित आडंबरी हो।
अगर वास्तव में आप देशप्रेमी हैं,
देश के सच्चे किसान हैं,
देश पर आपको अभिमान है,
तो…
विरोध की जगह, प्रबोध को जगाओ,
विरोध में इतना धान उगाओ,
विकास में इतना ज्ञान और ध्यान लगाओ,
कि…
विश्वास का प्रकाश हो, सत्यता प्रमाणित हो,
और जो अब तक ना हो सका,
किसानों का जीवन-विकास पूर्ण हो।
और सरकार बाध्य हो, संशोधन की ओर अग्रसर हो।
आओ मिलकर प्रण करें,
तिरंगे की आन को, इसकी शान को,
कोई छू ना पाए।
यह ना पूछें कि,
देश ने क्या दिया,
बस यही कहें-
मैंने देश के लिए क्या किया।
ये जो भी किसानों के वेश में,
शांति दूत बन किसानों का भला कर रहे।
राजपुरोहित चिंतित है,
ऐसी राजनीति निंदित है।
–Brig JS Rajpurohit, Ph.D. Group Commander, Group HQ NCC, Gorakhpur (UP)
भावप्रवण कविता। ब्रिगेडियर साहब तिरंगा हमारी आन, बान और शान है। गणतंत्र के गुनहगारों को सजा मिलनी चाहिए। आपकी ललकार वतन के हर नागरिक तक पहुंचनी चाहिए।
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